"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥"
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इतिहास

कराहा धाम

श्री काशी बाबा

श्री काशी बाबा जी का जन्म लगभग ५०५ वर्ष पूर्व पन्द्रहवीं शताव्दी में ग्वालियर अंचल से ५५ किलो मीटर संगीत सम्राट तानसेन की साधना स्थली वेहट के ग्राम गूंजना में प्रजापति परिवार में हुआ इनके माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे पिता का हरि प्रसाद ओर मां गंगा बाई जैसा नाम वैसे हि गुणों से परिपूर्ण थे गांव के सभी लोग उनका सम्मान करते थे। परिवार में परम्परानुसार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम होता था काशी भगत अपनी मॉ के साथ जंगल में लकड़ी बीनने जाते थे जिससे मिट्टी के बर्तनों को पकाया जा सके |

साधना

सिद्ध गुरू महाराज साधना करते हुए

जिस स्थान पर ये मां बेटे जाते थे उससे कुछ दूरी पर जहां से झिलमिल नदी का उदगम् स्थल है वहां पर एक सिद्ध महात्मा सधना करते थे | काशी देव जब भी उधर जाते एक टक उन महात्मा जी को निहारते रहते थे धीरे-धीरे काशी भगत का वहां ऐसा मन लगा कि वे घर-द्वार छोडकर उनकी सेवा करने लगे |

दीक्षा

सिद्ध गुरु महाराज काशी बाबा को दीक्षा देते हुए

उनकी सेवा से प्रसन्न होकर सिद्ध गुरु महाराज ने इन्हें गुरु दक्षिणा दी ओर दोनो गुरू चेला साधना करते रहे अंत में सिद्ध गुरू ने काशी भगत को लोकिक शक्ति प्रदान करते हुए संसार में दीन दुखियों की सेवा करने का वरदान दिया, अब काशी बाबा को शक्ति प्रदान होंने के कारण लोगो का भला करने लगे ,एक दिन गांव में किसी व्यक्ति ने काशी भगत की मॉ का अपशब्द कहकर अपमान कर दिया और जब यह बात काशी भगत को मालुम हुई तो उन्हें क्रोध आ गया ओर उन्होंने उसे श्राप दे दिया कि जिसने मेरी मां का अपमान किया है वह अगले दिन सुबह का सूरज नहीं देख पायेगा |

क्रोध और क्षमा

क्रोधित और क्षमा

परिणाम स्वरूप उसका पूरा घर नष्ट हो गया जब यह बात सिद्ध गुरू को मालुम हुई तो उन्हें बहुत दुख हुआ ओर क्रोधित होकर हत्या का परिणाम भुगतने को कहा! परिणाम स्वरूप काशी भगत में कुृष्ट के लक्षण प्रकट होंने लगे तब गॉव के लोग उनका वहिष्कार करने लगे |

साधना

काशी बाबा साधना करते हुए

तब काशी बाबा ने झिलमिल नदी के तट पर १२बर्ष घोर साधना की, तब गुरू ने प्रसन्न होकर कालान्तर में सेवा करने आदेश दे माफ कर दिया ,तब बाबा ने उसी स्थान पर समाधी लेकर ब्रह्मलीन हो गये ! सत्य घटनानुसार- श्री मंत सिधिया महाराज इस क्षेत्र में अक्सर शिकार खेलने आते थे एक बार वह इस समाधी स्थल के पास से गुजरे तो उनका रथ यहां फस गया ओर इस रथ को निकालने के लिए उनके साथ जो हाथी घोडे थे उन्हें लगाकर भी रथ टस से मस नहीं हुआ तब बहां पर गांव के लोगो ने महाराज को समाधी ओर बाबा की पूरी बात बताई ओर कहा कि यह सिद्ध क्षेत्र हे यहां शिकार करना वर्जित है तब सिधिया महाराज ने अपनी भूल का अहसास कर समाधी स्थल पर जाकर अगर यह सिद्ध क्षेत्र है तो मेरा रथ सारथी के द्वारा ही अपने आप निकल जाए और ऐसा ही हुआ रथ सारथी द्वारा अकेला ही निकल गया | फिर उन्होंने क्षमा याचना की ओर बाद में मिट्टी से बनी समाधी की जगह पक्का चबूतर ओर मंदिर बनवाया ओर पूरे गांव के साथ मिलकर भंडारे का आयोजन किया तब से निरन्तर होली की चोथ व पंचमी को यहां समाज का विशाल मेला लगता है जिसमें सभी जगह से हजारों कि संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।